ZIAUDDIN

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Wednesday, November 24, 2010

wedding...with Salman Khan

Asin, Salman 'Marriage' Buzzes South' - Bollywood1


 

Asin Thottumkal has been besieged with calls congratulating her on her wedding...with Salman Khan, no less! Surely, any girl in her right mind would be ready for the nuptials. Precisely, that's what Asin's declaring too.
 
Salman Khan wedded Asin in a solemn ceremony. The duo was 'Ready' for it, and preparations were in full swing to ensure that sequence went off smoothly. Incidentally, Asin's gone the whole hog, wedding wise. She's endured the thrills of a Tamil, Telugu and Malayali wedding in South cinema. And now, in a fitting tribute to nuptials, she's relishing the whole fuss and drama that the "Punjabi  marriage" in the Anees Bazmee helmed flick has raked up.
 

Asin, Salman 'Marriage' Buzzes South' - Bollywood3
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Amid giggles, Asin states in a tabloid chat, "I'm really enjoying this whole wedding bit joke. I've been taking the 'saat pheras' in my bridal outfit for a week now. I almost feel married to Salman now. The family opposition bit is also part of the script."  The much married actress (hey, in South cinema only) has stumbled upon the joys of a full throttle Punjabi wedding.
Reveals Asin, "I've gone through Malayali, Tamil and Telugu marriages in my films, but this is my first Punjabi wedding. I've loved every moment of it and even danced at my own 'sangeet'.
 
 
In fact, hunky co actor Salman Khan too seems to be totally sold over the fun and frolic of a Punjabi wedding. And whadya know, the duo has decided that whenever they decide to opt for matrimony, the ceremony will be conducted in true Punjabi style. Asserts Asin, "Salman and I have made a pact. It'll be a big fat Punjabi wedding." Eligible (and loaded) singletons, grab your clue...
 
ZIAUDDIN
 

Tuesday, November 23, 2010

"रिपोर्ट यहाँ दर्ज करावें"




पने कई जगहों पर लिखे स्लोगन पढ़े होंगे जिन पर 
लिखा होता है "मोबाईल यहाँ पर रिचार्ज होता है,दूध-दही-मक्खन यहाँ मिलता है,देसी मुर्गी के अंडे मिलने का एक मात्र स्थान...." जैसी  कई और बातें...अब आप बिलासपुर के किसी भी थाने में जायेंगे कुछ उसी अंदाज में एक बोर्ड पर लिखा मिलेगा"रिपोर्ट यहाँ दर्ज करावें"...मतलब दुकानदारी या यूँ कहूँ की जिस तरह से ग्राहक फ़साने के लिए दुकान के बाहर आकर्षक स्लोगन लिखा होता है वैसा ही कुछ थानों में लिखकर पीड़ित की परेशानी को कम करने का प्रयास किया गया है...अब किसी भी पीडीत को थाने पहुंचने के बाद रिपोर्ट लिखवाने के लिए भटकना नही पड़ेगा...एक निर्धारित जगह पर बैठे खाकी वर्दी वाले साहेब से मिलकर बस आपको अपनी व्यथा सुनानी है..ये बात अलग है की आप जब थाने जाये तो जरुरी नही की वो साहेब आपको मिल जाएँ..हाँ सबको जी हुजुर बोलने के झंझट से आम जनता को छुटकारा जरुर मिल जायेगा...हर बात के लिए {"रिपोर्ट यहाँ दर्ज करावें"}इस बोर्ड के नीचे लिखे साहब से संपर्क करिए..व्यवस्था नई है,हो सकता है महंगाई के मुताबिक फीस बढ गई हो पर समस्या हल होगी ऐसा विभाग के अधिकारी भी कहते है...पुलिस अधिकारी शहर के थानों में हरियाली लाने पौधारोपण कर रहे है,कई थानों का कायाकल्प हो रहा है...नई साज-सज्जा के साथ कई थानों में थानेदार से लेकर रंगरूट तक नये है...लगता है खाकी अब नये अंदाज में जनता को उल्लू बनाने की फ़िराक में है... शहर में
पिछले तीन चार महीनो में अपराध का ग्राफ जितनी तेजी से बढा है उससे तो यही लगता है की ऊपर से लेकर नीचे तक सब अपराधी की परछाई को पकड़ने के लिए पैदल चल रहे है...अपहरण,हत्या,चोरी,लूट जैसी वारदात अब खुलेआम और बेखोफ हो रही है...वारदात के बढे ग्राफ से साहेबानो को भी खास फर्क नही पड़ता...साहेब लोग अपने में मस्त है और अपराधी अपने कारनामो में...वैसे बिलासपुर जिले की कानून व्यवस्था का हाल भगवान भरोसे उसी दिन से हो गया जिस दिन से थोरात साहेब बतौर एसपी यहाँ आये...हर दस दिन बाद थानों में फेरबदल,यहाँ-वहाँ जवानो की बेजा कसरत और पुलिस के वास्तविक कर्तव्यों को भूल बाकी सब कुछ करना,यही सच खाकी वर्दी के पीछे छिपे कुछ इन्सान गाहे-बगाहे कर देते है....वरना तो अब सारे दबंग ये कहते फिर रहे है कि रिपोर्ट दर्ज कराना है तो यहाँ आयें....


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Sunday, November 21, 2010

बड़ी "पोलिटिक्स" है भाई...


मुझे नफ़रत हैं ऐसे लोगों से लेकिन क्या करें, कुछ लोगों की दुकानदारी ही ऐसे चलती है... वो उस मछली के किरदार में होते हैं जो पूरे तालाब को गंदा कर देती है... जिनका स्वार्थ ही दूसरों को छोटा साबित करके ख़ुद को बड़ा बनाना है.....और आख़िर में अपनी आदत से मजबूर होकर वो अपने ज़मींदोज़ होने का मार्ग प्रशस्त कर लेते हैं....हालाँकि उस मार्ग में बढ़ते कदमो की आहट सुनाई नही पड़ती...
आप किसी भी सरकारी या गैर सरकारी दफ़्तर में काम करते हों....ज़रा बताइए, कितने लोग हैं आपके दफ़्तर में जो अपनी नौकरी से संतुष्ट हैं.....अरे, लोग जिसकी नौकरी करते हैं, उसी को गाली देते फिरते हैं..... जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं.... मेरे दफ्तर में ऐसे दो चेहरे वालो की फेहरिस्त लम्बी है...लोग परस्पर किसी भी मुद्दे पर असहमत हों लेकिन अपनी नौकरी और बॉस को लेकर कामोबेश सभी एक दूसरे से सहमत होते हैं.....सभी का ‘संस्थागत मानसिक स्तर’ ख़तरे के निशान से ऊपर ही रहता है....सरकारी नौकर अपने अधिकारी से परेशान और प्राइवेट वाले अपने बॉस से......वैसे मेरे दफ्तर में मालिक को छोड़ दे तो सभी अपने-अपने स्तर पर बास होने का दावा करते है...मै तो पिछले कई बरस से यही समझने की कोशिश कर रहा हूँ आखिर बास है कौन ?
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ऑफ़िस में लोगों को अपना बॉस हिटलर का बेवकूफ़ क्लोन क्यों नज़र आता है? कर्मचारियों का मानना होता है कि बॉस तो कर्मचारियों को मज़दूर समझता है.... दफ़्तर के सर्वाधिक नाकारे लोग बॉस को गाली देते फिरते हैं....जिनके पास काम होता उन्हे बॉस और सहकर्मियों को गाली बकने का समय नहीं मिल पाता, लिहाज़ा वो घर आकर अपनी व्यस्तता का गुस्सा अपने बीवी-बच्चों पर निकलाते हैं....बॉस कितना भी अच्छा क्यूं ना हो कभी प्रशंसा का पात्र नहीं बन पाता.....पता नहीं क्यूं, हर तरह का कर्मचारी अपने को शोषित मानता है......जो कुछ काम नहीं करते वो कहते फिरते हैं कि मेरी प्रतिभा को यहां कुचला जा रहा है, मुझे मौक़ा ही नहीं दिया जाता, मौक़ा मिलते ही मैं तो जंप मार जाऊंगा.... कोई और धंधा पानी शुरू करूंगा... और जिनसे काम लिया जाता है, वो भी यही कहते घूमते हैं कि मेरा शोषण हो रहा है, वेरी वॉट लगा रखी हैं, गधों की तरह मुझसे काम लिया जाता है, मौक़ा मिलते ही मैं तो जंप मार जाऊंगा....

ना जाने क्यूं कुछ लोग अपने जिस दफ़्तर को जहन्नुम बताते फिरते हैं, उसे ये जानते हुए भी नहीं छोड़ना चाहते कि उनके ना रहने से कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं.... वो जन्म भर की तरक्की की उम्मीद वहीं रहकर करते हैं, उनकी प्रतिभा भी पहचान ली जाए, सारे महत्वपूर्ण काम उन्ही से कराए जाएं, उनकी तनख्वाह भी उनके मन मुताबिक हर साल बढ़ा दी जाए, उनके अलावा किसी और को भाव ना दिया जाए..... अरे भाई, आप इतने ही प्रतिभावान हैं तो कहीं और किस्मत क्यों नहीं आज़माते.....ऐसे लोग अपनी नौकरी को गाली भी बकेंगे और रहेंगे भी वहीं.....ये भी ख़ूब है......वैसे ऐसे लोग बेवकूफी का स्वांग रचकर संस्था की आड़ में बाजार से जैसे हो सके नोट बटोरते है....इस खास प्रजाति के लोगो की असल औकात २ समोसे से शुरू होकर ५००-१००० रुपये तक दम तोड देती है....कभी जाल में कोई बुरा फंस गया तो ये लोग औकात से बड़ी बात करने से भी नही चूकते.....वैसे भी मेरी बिरादरी के चर्चे २जी स्पेक्ट्रम तक पहुँच गए है..... सच कहू प्रतिष्ठा भी इस खास प्रजाति के लोगो की ज्यादा नजर आती है....इन्हें  घर से लेकर अपनी जरुरत पूरी करने के लिये हर दिन किसी ना किसी की चाटुकारिता का नाटक करना पड़ता है,ये जिसे उस दिन का बकरा समझते है वो इनसे ज्यादा होशियार और चालक होता है....वो कथित बकरा हलाल{रूपये देने}होने से पहले सब कुछ अपने हिसाब से करवा लेता है...इस बीच अगर आपसे कुछ गलती हुई तो मोबाईल की घंटी बजने में भी वक्त नही लगता,फिर सफाई देने से लेकर दुबारा गलती ना होने की गारंटी भी वो पत्रकारिता का मुखौटा लगाये लोग लेते है...ऐसे में आप सोच सकते है की वो लोग दूसरी जगह जाकर मेहनत करेंगे ?बेवकूफ ही होगा कोई जो महीने की बधी-बधाई कमाई छोड़कर दूसरी जगह जायेगा...फिर भी कुछ लोगों को हमेशा लगता है कि सबसे ज़्यादा काम तो वही करते हैं, फिर भी उनकी तनख़्वाह कितनी कम है और बाक़ी सारे तो बस गुलछर्रे उड़ाने की सैलरी पाते हैं....  वो लोग सोचते है की काम मैं करता हूं और पैसे दूसरों को मिलते हैं.....छोड़ूंगा नहीं.....ऐसे कितने ही प्रतिभावान लम्मपट दूसरों की तरक्की में टंगड़ी लड़ाने के चक्कर में अपनी ही छीछालेदर करवाते है लेकिन उनकी बेशर्म बांछे हमेशा खिली नजर आती है....चलिए यही रुक जाता हूँ वरना नवसिखिये कलमकारों को ढक्कन भर शराब में लोटा भर पानी मिलाना पड़ जायेगा....

ZIAUDDIN

Thursday, November 18, 2010

The much-hyped marriage

We want Sara, Ali relationship to end - Bollywood1



The much-hyped marriage of television actress Sara Khan and Ali Merchant is over and the former's mother says that they were never in favour of the relationship. (IANS)
We want Sara, Ali relationship to end - Bollywood2
 
 
'We never liked Ali and we were opposing their marriage. But today the time has changed. Parents have to follow children, the children don't follow them,' Sara's mother Seema Khan told IANS. 'We want this relationship to get over,' she added.
We want Sara, Ali relationship to end - Bollywood3
 
 
Both Sara and Ali are from Bhopal and they moved to Mumabi to pursue their acting career. Sara got fame with her role in Star Plus's 'Sapna Babul Ka - Bidaai', while Ali came to the limelight with Imagine's 'Do Hanson Ka Joda'.
 
                                                                 
 We want Sara, Ali relationship to end - Bollywood4
 
 
 
Both Sara and Ali tied the knot Nov 10 in 'Bigg Boss' house, but within 43 days the reports came that the two are living separately in Mumbai. The reason for the rift is said to be Ali misusing the money Sara earned by participating in 'Bigg Boss 4'.
 
 
We want Sara, Ali relationship to end - Bollywood5
 
After staying in 'Bigg Boss' house for weeks, Sara was evicted early this month.  Sara's phone was found switched off when attempts were made to contact her.
 
 
ZIAUDDIN
 
 

Wednesday, November 17, 2010

ये राजगोपाल हैं ...


     "खादी का कुरता-पायजामा,पैर में साधारण सी सैंडिल और काफी सरल स्वाभाव"....जो नही जानता उसके लिए वो शख्स कुछ भी नही है...मै जानता था टीवी,अखबारों और किताबो के जरिये,इस कारण मेरे लिए ऐसी शख्सियत से मुलाकात कई मायनो में ख़ास थी....सीधा,सरल लेकिन आदिवासियों के हक़ के लिए संघर्ष का तेवर बड़ा ही सख्त....इस ख़ास शख्सियत का नाम राजगोपाल पी.व्ही.है...जितना सुना था उससे कही ज्यादा है राजगोपाल जी...प्रेस क्लब में आज आये और प्रेस कांफ्रेंस के जरिये जल,जंगल,जमीन पर खूब बोले....आदिवासियों के हक के लिए पिछले २ दशक से संघर्ष करते राजगोपाल साफ़ कहते है की सरकार वन अधिकार कानून का पालन करे...वैसे तो राजगोपाल के संघर्ष की कहानी तब से शुरू होती है जब मै इस दुनिया में आया ही नही था...राजगोपाल जी के करीबियों की माने तो जिस वक्त मध्यप्रदेश के चम्बल में डाकुओ का आतंक था वो एस.एन. सुब्बाराव नाम के शख्स के साथ किशोर अवस्था से जुड़ गए....ये वही सुब्बाराव थे जिनकी पहल पर ७०० डाकुओ ने आत्मसमर्पण किया था... सुब्बाराव के साथ काम करने वाले राजगोपाल ने वर्ष १९७२ के बाद फिर कभी मुड़कर नही देखा....संघर्ष यात्रा का सफ़र काफी लंबा है,हौसले इतने बुलंद है की सफर की दूरी का पता ही नही चल रहा है....मैंने राजगोपाल जी को जितना पास से आज देखा उतने ही गौर से करीब ३२ मिनट तक सुनता रहा....आदिवासियों के हित संवर्धन के लिए बढ़ते कदमो को इस बार भी सफलता मिलेगी तय है.....आज राजगोपाल जी ने प्रेस क्लब में जो कहा उसमे प्रमुख रूप से वनवासियों को उनका वाजिब हक़ सरकार दे.....राजगोपाल जी कहते है २००७ से २०१० के बीच केंद्र सरकार ने आदिवासियों के विकास पर ४२०० करोड़ रूपये खर्च किये.....करोडो रुपयों का खर्च आज तक आदिवासियों के तन पर ठीक से लंगोट भी नही दिला पाया....भ्रष्टाचार की जड़ो से निकली साखो ने आदिवासियों का हक़ छीन लिया....राजगोपाल जी मानते है की कंक्रीट के जंगलो ने आदिवासियों की जमीने लील ली....आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर दिया गया जो कानूनन गलत है....जल,जंगल,जमीन के लिए आने वाले बर्षो की कार्ययोजना भी तैयार है....वर्ष २०१२ में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने वाले ग्वालियर से दिल्ली के लिए कूच करेंगे.....अहिंसात्मक सत्याग्रह के जरिये  सरकार पर दबाव बनाने पदयात्रा की जाएगी.....राजगोपाल जी और उनके असंख्य साथियो का सफ़र जारी है....आदिवासियों,किसानो को उनका वाजिब हक़ दिलाने के लिए हजारो किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय करते राजगोपाल जी भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बने राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद् के सदस्य भी है....उम्मीद करता हूँ जिस मकसद को लेकर यात्रा जारी है उसकी मंजिल जल्दी मिल जाएगी......
                                                                                       छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश,उड़ीसा,झारखण्ड जैसे राज्यों में आदिवासियों की हालत काफी खराब है....इन बातो को बड़ी ही दमदारी से कहते राजगोपाल जी नक्सलवाद पर भी काफी कुछ  कह गये....उन्होंने साफ़ कहा की छत्तीसगढ़ में न्याय और रोटी नही मिलने का नतीजा है नक्सलवाद....सरकार से खिन्न और असंतुष्ट लोगो ने हिंसा का रास्ता अख्तियार कर रखा है....वो ये भी कहते है कि सरकारों के कामकाज से कई संगठन भी असंतुष्ट है लेकिन अहिंसा,सत्याग्रह का रास्ता अपनाकर मांगो को मनवाने की कोशिश की जा रही है....राजगोपाल जी ने ये तो कह ही दिया की नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर अहिंसा की राह पकडे और सरकार भी अपनी भूल सुधार कर असंतुष्टो की रोटी,न्याय के लिए ठोस योजना बनाए.....
                                                 राजगोपाल जी से हम दूध के धुले होने की उम्मीद नही रखते लेकिन राजगोपाल जैसे लोगो ने कम से कम गांधी के रास्ते से समाज के आखरी आदमी के लिए लड़ाई तो शुरू की है....राजगोपाल जैसे लोग हमारे जैसे लोगो के लिए अँधेरे में जल रही एक कंडील की तरह है जिनसे उम्मीद जगती है अभी सब कूच ख़त्म नही हुआ है....दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए कुछ लोग अब कोशिश कर रहे है....हमारे जैसे लोग उस टिटिहरी के साथ है जिसके अंडे समुन्दर बहा ले गया है और वह उसी दिन से रेत ला-ला कर उस समुन्दर को भरने की कोशिश कर रही है.....

Saturday, November 13, 2010

चकल्लस में मीडिया...


नमस्कार दोस्तों --
 मीडिया..........हर जगह ये लोग पहुंचे रहते है....बिना बताये और बिना बुलाये....अभी हाल ही में शिरडी में एक घटना घटी...या कहे कि घटना घटा दी गयी...
मीडिया के साथ बदसलूकी का पूरा ठीकरा रितिक रोशन पर फोड़ दिया गया.. पूरा माजरा हम आपको बताते है कि क्या हुआ था उस दिन.....फिल्म अभिनेता रितिक रोशन अपने परिवार के साथ शिरडी के सांई बाबा के मंदिर में दर्शन करने गये थे...जो कि वो हमेशा किसी भी फिल्म के रिलीज होने के पहले करते है....ऐसा इस बार भी किये..लेकिन घटना ये घटी कि बिना बुलाये मेंहमान वहां भी पहुंच गये....फिर क्या होना था...वही जो बिना बुलाये मेहमान करते है...धक्का मुक्की का दौर चला...और इल्जाम लगा रितिक रोशन पर...रितिक को कहा गया कि वो फिल्म के पब्लिसिटी के लिये इस तरीके की हरकत कर रहे है..जबकि रितिक ने ट्विटर पर लिखे कि ये उनका निजी दौरा था जिसमें वो मीडिया को मना कर रहे थे लेकिन मीडिया ने नहीं माना और उनका फोटो खीचने लगें...जिसकी वजह से ये सारा मामला हो गया...अब रितिक रोशन को भी समझना चाहिये कि शिरडी के सांई बाबा उनके अकेले तो है नही...मीडिया ने बकायदा मंदिर प्रशासन से अनुमति लेके मंदिर में प्रवेश किया था....खैर ऐसे मौको पर मीडिया ताक में रहती है कि कोई घटना ऐसी हो जाये जिससे उनको मशाला मिल जाये...भाई मीडिया के बारे में जहां तक मै जानता हूं वहां एक बात सामने निकल के आती है..वो बात ये है कि रिपोर्टर जब भी किसी ख़बर के लिये ऑफिस से निकलता है तब उसका मेन मोटो यही होता है कि कोई ब्रेकिंग मिल जाये नहीं तो बना ली जायेगी क्योंकि बॉस की तारीफ जो बटोरनी है...इन रिपोर्टर लोगो को ये पता होना चाहिये कि वो इन सस्ती टीआरपी के चक्कर में जो काम करते है उससे सामने वाले के दिल पर क्या बीतती है....न्यूज़ चैनल वालो के लिये सबसे बड़ी खबर वॉलीवुड से होती है...अगर मुंबई में किसी कलाकार को छींक आ गयी तो ये लोग पूरे मुंबई के तापमान का पोस्टमॉर्टम कर देंगे....लेकिन अगर उड़ीसा या फिर झारखंड में किसी नक्सली का कहर टूटेगा तो ये उस ख़बर को महज टिकर में अपडेट कर देते है......खैर रितिक रोशन जैसा मामला खली और कुछ दिन पहले टीम इंडिया के स्पिनर हरभजन सिंह के साथ हुआ.....अब देखने वाली बात ये होगी कि कभी सच्चाई को सामने लाने की मुहिम में लगी मीडिया अपने पुराने अस्तित्व में कब लौटेगी ।
"जियाउददीन"