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Thursday, December 30, 2010

Psychological Maturity -- मानसिक परिपक्वता

प्रायः ६० वर्ष की आयु निवृत्ति की आयु मानी जाती है, जबकि वैज्ञानिक शोधों से पाया गया है कि मनुष्य में मानसिक परिपक्वता ४० वर्ष की आयु से आरम्भ होती है और लगभग ७० वर्ष की आयु तक विकसित होती रहती है. हाँ, इतना अवश्य है कि ६० वर्ष की आयु के बाद शारीरिक क्षय होने की संभावना हो जाती है.
मानसिक परिपक्वता का सबसे महत्वपूर्ण कारण स्मृति में अनुभव-जन्य सूचनाओं का अधिक समावेश होना होता है, जो ४० वर्ष की अवस्था के बाद तीव्रता से संवर्धित होता है क्योंकि उस समय व्यक्ति अपने लक्ष्यों, कर्तव्यों और अवलोकनों के बारे में अधिक गंभीर हो जाता है जिससे उसका प्रत्येक अनुभव मूल्यवान होता जाता है.
शोधों से पाया गया है कि मानसिक अपरिपक्वता की अवस्था में व्यक्ति अपने मस्तिश के के केवल दायें भाग का उपयोग करता है जबकि दूसरा केवल आकस्मिक उपयोगों के लिए सुरक्षित रहता है. किन्तु परिपक्वता की स्थिति में व्यक्ति अपने मस्तिष्क के दोनों भागों का उपयोग करने लगता है. इसका प्रबाव वैसा हे होता है जैसा
कि किसी कार्य करने में एक हाथ और दोनों हाथों के उपयोग में होता है. समस्त मस्तिष्क के उपयोग से व्यक्ति की दक्षता और निर्णय अधिक सशक्त होते हैं.
परिपक्व आयु में व्यक्ति द्वारा छोटी-छोटी बातों जैसे किसी का नाम याद
न आना, चाबी को कहीं रखकर भूल जाना, आदि,  का भूलना उसकी निर्बलता नहीं होती अपितु
इसका केवल यह तात्पर्य होता है कि व्यक्ति गंभीर विषयों पर अधिक ध्यान देता है
जिससे ऐसी बातें जिनका कोई महत्व नहीं होता भुला दी जाती हैं. 
परिपक्व अवस्था में मस्तिष्क में मायलिन की मात्रा अधिक हो जाती है जो मस्तिष्क की नाडियों
को एक दूसरे से प्रथक रखता है और सूचनाएं एक दूसरे से मिश्रित नहीं हो पातीं. इसी कारण से भारत के प्राचीन कवि घाघ ने कहा है -


'मांस खाए मांस बढे, घी खये खोपडा'  मायलिन चिकनाई से बना
द्रव्य होता है जो दूध में पर्याप्त पाया जाता है. मस्तिष्क विकास में इसका
महत्वपूर्ण योगदान होता है. 
Matured 
६० वर्ष की आयु के बाद जब मांसपेशियां शिथिल होने लगें और व्यक्ति शारीरिक सरम में थकान अनुभव करने लगे, उसे मानसिक कर्मों में अधिक लिप्त
होते जाना चाहिए. इसके दो लाभ होते हैं - व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता का उपयोग होता है, और उसकी मानसिक शक्ति उपयोग के कारण अक्षुण बनी रहती है. मानसिक शक्ति के अक्षुण बने रहने से मस्तिश शारीरिक आतंरिक गतिविधियों का नियमन भली भांति करता है
जिससे शरीर निरोग बना रहता है.


"जियाउददीन"

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