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Friday, December 24, 2010

Sports - Games in Education - एक अंतर्चेतना : खेल-खेल में शिक्षा

 

 

कुछ दिन पूर्व मेरे उद्यान
में एक जंगली बिल्ली ने तीन बच्चों को जन्म दिया, कुछ दिन बाद उनें से एक लुप्त हो
गया, दो मेरे उद्यान में अभी भी भ्रमण करते रहते हैं, कभी दोनों तो कभी अपनी माँ के
साथ. उनसे जो मैंने विशेष सीखा वह है खेलते रहना और सीखते रहना, अथवा यों कहिये कि सीखने के लिए समुचित खेल खेलिए. ये बच्चे बहुत अल्प समय के लिए विश्राम से बैठते
हैं और अधिकाँश समय उछल-कूद करते रहते हैं - कभी एक दूसरे के ऊपर तो कभी बिल्ली के
ऊपर, तो कभी पेड़-पोधों पर.
बिल्ली तथा बच्चों का सर्वाधिक प्रिय खेल बिल्ली
द्वारा लेते हुए अपनी पूंछ को झटके से इधर से उधर लेजाना, तथा बच्चों द्वारा उसके
सिरे पर उछल कर झपट्टा मारना. बच्चे जब बहुत छोटे थे तब वे यह खेल बहुत अधिक खेलते
थे किन्तु धीरे-धीरे यह खेल कम होता जा रहा है. इस खेल के माध्यम से बिल्ली बच्चों
को दौड़ते हुए शिकार पर झपट्टा मारना सिखाती है. इसी प्रकार से उनके अन्य खेल भी
किसी न किसी प्रकार की शिक्षा के माध्यम हैं. इस प्रकार उनकी माँ उनकी आरंभिक
शिक्षिका है और अब वे एक दूसरे के साथ अभ्यास करते हुए भी अपने जीवन हेतु उपयोगी
शिक्षाएं गृहण कर रहे हैं.
Instinct
बिल्ली के बच्चों द्वारा इस प्रकार शिक्षा गृहण करना उनका
जन्म-जात गुण है, जिसके लिए उनको कोई बाह्य प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है. इस
जन्म-जात गुण का कारण यह है कि बच्चों का जीवन शिकार पर निर्भर है, और शिकार के लिए
उन्हें इस शिक्षा की आवश्यकता है. यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि शिकार करना उनका
जन्म-जात गुण नहीं है, किन्तु इसके लिए शिक्षा पाना उनका जन्म-जात गुण है. इस
प्रकार के जन्म-जात गुणों को जीव की अंतर्चेतानाएं (इंस्टिंक्ट) कहा जाता है.  इस
प्रकार शिक्षा पाने की इंस्टिंक्ट सभी जीवों में उपस्थित होती है - मनुष्यों में
भी.  मनुष्य का बच्चा अपना अंगूठा मुंह में देकर चूंसता हुआ अपनी माँ के स्तनों से
दूध पीने की शिक्षा पाता है, जो बाद में कुछ बच्चों की आदत बन जाती है.



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