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Tuesday, December 28, 2010

River, lake & Ponds-- नदी स्नान के खतरे

भारत में प्रत्येक पूर्णिमा पर नदी-स्नान की प्राचीन परम्परा है. इसके अतिरिक्त भी वर्ष में लगभग एक दर्ज़न पर्वों और अनेक अन्य पारिवारिक रिवाजों में नदी-स्नान शुभ माना जाता है. ये परिपाटियाँ इतनी सशक्त हैं कि ऐसे अवसरों पर सभी मार्ग नदी तटों की ओर अग्रसरित होते प्रतीत होते हैं, तथा अन्यत्र हेतु आवागमन के साधनों का भी अभाव उत्पन्न हो जाता है. अनेक क्षेत्रों में सामान्य जन-जीवन ठप पड़ जाता है. जहां नदी तट समीप नहीं हैं, अथवा लोग नदी तट पर जाने में असमर्थ होते हैं, वे निकटस्थ झीलों, तालाबों आदि में तथाकथित पवित्र स्नान कर लेते हैं.
यद्यपि ग्रीष्म काल के लिए तैरना सर्वोत्तम व्यायाम है, तथापि समुद्र, झील, ताल अथवा नदियों के खुले जल में स्नान करना खतरे से मुक्त नहीं है, क्यों कि ये वर्षा तथा बस्तियों के व्यर्थ जलों के आगमन से विषाक्त हो जाते हैं. भारत की पवित्रतम नदी - गंगा, के पवित्रतम नगर - वाराणसी, में सार्वजनिक स्नान हेतु बने घाटों पर जल के प्रदूषण की स्थिति इसका स्पष्ट साक्ष्य है, जहां वर्ष भर कई लाख लोग स्नान करते हैं. 
इन खुले जल स्रोतों के विषाक्त होने का एक अन्य प्रमुख स्रोत स्वयं स्नान करने वाले व्यक्ति होते हैं जिनमें से अनेक छूत के रोगी होते हैं और इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता. इन छूत के रोगों का और भी अधिक प्रसारण होता है जब श्रद्धालु इन विषाक्त जलों का पीने के लिए उपयोग करते हैं, जिसका भी भारत में प्रचलन है.
इन विषाक्त जलों से त्वचा, आँख, कान, श्वसन और आँतों के अनेक रोग उत्पन्न होते हैं. इनमें उपस्थित क्रिप्तोस्पोरिदम, गिअर्डिया, शिगेला, ई. कोली, आदि विषाणु दस्तों जैसे आँतों के रोग उत्पन्न करते हैं. इन्हीं स्नानों के कारण कुश्त, दमा, हैजा, कोलेरा, आदि रोग नित्य प्रति फैलते रहते हैं और इनका कोई अंत प्रतीत नहीं होता. इन रोगों के उपचार में विशेष कठिनाई यह होती है कि इन्हें फ़ैलाने वाले विषाणुओं की सही पहचान भी नहीं हो पाती.    
नदी, झील और तालाबों के जलों में स्यानोबैक्टीरिया उपस्थित होते हैं जो अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न करते हैं. इनमें फॉस्फोरस उर्वरकों, कागज़ के मीलों और अन्य औद्योगिक इकाईयों के प्रदूषित जलों के मिलने से नीलम-हरे स्यानोबैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं जो यदा-कदा इनके तलों पर हरित चिकनी परत के रूप में दिखाई भी पड़ते हैं. इन बैक्टीरियाओं के क्षणिक स्पर्श से भी दाद-खाज जैसे त्वचा रोग तथा आँतों एवं यकृत के रोग उत्पन्न हो जाते हैं.  Amyotrophic Lateral 
Sclerosis: Beyond the Motor Neuron (Neuro-Degenerative Diseases)
 
स्यानोबैक्टीरिया की कुछ प्रजातियाँ जल में नयूरोटोक्सिन भी उत्पन्न करते हैं जिनसे पार्किन्सन, ए.एल.एस जैसे मस्तिष्कीय  रोग उत्पन्न होते हैं.  ए.एल.एसतीव्रता से बढ़ने वाली और निश्चित रूप से मस्तिष्क के लिए घातक व्याधि है जो शरीर की मांसपेशियों पर नियंत्रण रखने वाली मस्तिष्क की कोशिकाओं पर प्रहार करती हैं जिससे उनका शनैः-शनैः क्षतिग्रस्त होते हुए पतन हो जाता है.
"जियाउददीन"

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