
काफी एक अच्छा पेय है किन्तु कोई भी वस्तु
सभी परिस्थितियों में अच्छी सिद्ध नहीं हो पाती. समुद्री तट के नम क्षेत्रों का
उत्पाद होने के कारण यह शरीर में शुष्कता उत्पन्न करती है. इसलिए मैदानी क्षेत्रों
के शुष्क मौसम में काफी का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए. ऐसी अवस्था में काफी
के साथ दूध मिलाना लाभकर होता है क्योंकि दूध की वसा काफी की शुष्कता को संतुलित कर
देती है, अन्यथा काली काफी का कोई जवाब नहीं.
एक और चेतावनी : उत्तरी भारत में काफी के नाम पर
चिकोरी का उत्पादन किया जा रहा है, जिसका संस्कारित चूर्ण काफी जैसा स्वाद देता है.
चिकोरी काफी में मिलावट के लिए उपयोग की जाती है. इसलिए उत्तरी भारत में आप काफी के
नाम पर चिकोरी अथवा इसकी मिलावट पा सकते हैं. काफी में चिकोरी की मिलावट संयुक्त
राज्य अमेरिका में भी की जाती है किन्तु वहां इसकी मिलावट का प्रतिशत काफी के पैकेट
पर लिखा जाना अनिवार्य है. भारत मतवालों का देश है यहाँ सबकुछ चलता है बे रोकटोक -
काफी में मिलावट भी.
अब आते है अपनी विषय-वस्तु अर्थात काफी के सद्गुणों पर,
एक-एक करके -
ओक्सिडेंट निरोधक
शरीर में चलने वाली अनेक
प्रक्रियाओं में द्रव्यों का ऑक्सीकरण होता रहता है जिनसे अनेक ओक्सिडेंट शरीर में
जमा होने लगते हैं. इनकी अधिकता होने पर शरीर में अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं
इसलिए इनका नियमित निष्कासन आवश्यक होता है. यद्यपि फल और सब्जियां सर्वाधिक प्रबल
ओक्सिडेंट निरोधक होती हैं तथापि अमेरिका में ओक्सिडेंट निरोधक के रूप में काफी की
भूमिका प्रथम स्थान रखती है. दूसरे और तीसरे स्थानों पर काली-चाय और सर्वप्रिय केला
है.
जैविक क्रिया उत्प्रेरक
शरीर में जैविक
क्रियाओं की सतत उपस्थिति ही जीवन है जिसमें पाचन एवं पोषण भी सम्मिलित हैं. काफी,
विशेषकर प्रातः काल का एक प्याला, शरीर को तीन घंटे तक चुस्त, दुरुस्त और सक्रिय
बनाने के लिए पर्याप्त होता है, किन्तु इसमें अत्यधिक शक्कर, दूध, क्रीम आदि का
संयोजन नहीं किया जाना चाहिए. ऐसा मेटाबोलिक दर में वृद्धि के कारण होता
है.
स्मृति पोषक
काफी में पाया जाने वाला विशेष द्रव्य कैफीन
पहचान करने की क्रिया तो सक्रिय करता है जो मस्तिष्क की सक्रियता का द्योतक है.
इससे मनुष्य की अल्पकालीन स्मृति में सुधार होता है. शोधों से पाया गया है कि काफी
मस्तिष्क में बीटा अमाइलोइद नामक प्रोटीन की मात्रा की कमी करती है जो अल्ज्हेइमेर
रोग को जन्म देती है. इस रोग में व्यक्ति की अल्पकालिक स्मृति नष्ट हो जाती
है.
दन्त रक्षक
हुए काफी दानों को पीस कर काफी चूर्ण तैयार किया जाता है. भुने हुए काफी दानों में
ऐसे जीवाणुओं को नष्ट करने की सामर्थ्य होती है जो दांतों में सडन उत्पन्न कर
उन्हें खोखला बनाते हैं. इस प्रकार काफी दन्त क्षय को रोकती है किन्तु इसमें शक्कर
और दूध का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.
माइग्रेन का उपचार
माइग्रेन रोग के कारण व्यक्ति
के सिर में भारी पीड़ा होती है. कैफीन इसकी चिकित्सा का प्रमुख द्रव्य है जो काफी
में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है. इस प्रकार काफी सिर दर्द की अचूक औषधि है.
"जियाउददीन"