
कहते हैं कि फिल्म जब वी मेट की जबर्दस्त कामयाबी ने करीना को पूरी तरह से कॉन्फिडेंस दिया। दरअसल, उनकी समझ में यह आया कि अगर वे मेहनत करें और स्क्रिप्ट पर ध्यान देने केसाथ डायरेक्टर को तरजीह दें, तो सिर्फ अपने कंधों पर ही फिल्म खींच
सकती हैं। हालांकि जब वी मेट में शाहिद कपूर भी थे, लेकिन फिल्म पूरी तरह से करीना
की ही फिल्म थी। सच तो यह है कि उन्होंने इस फिल्म में दर्शकों के साथ जो रिश्ता
कायम किया, वह अभी तक चल रहा है। इस बीच उनकी टशन जैसी असफल फिल्म भी आई, जो तमाम
प्रचार और दावों के बावजूद नहीं चल सकी। नतीजा यह हुआ कि करीना ने जब वी मेट की
कामयाबी का पूरा श्रेय लिया और तुरंत अपनी फीस भी बढ़ा दी। शायद इसलिए, क्योंकि
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के निर्माता कामयाब हीरोइनों और डायरेक्टरों के लिए जेबें
ढीली करने में नहीं सकुचाते। उन्होंने करीना की बढ़ी फीस को उचित माना और उसके लिए
राजी भी हो गए।
सिर्फ करीना ही नहीं! इन दिनों बिपाशा बसु और लारा दत्ता भी अपनी
फीस को लेकर सचेत हो गई हैं। पिछले दिनों दोनों ने विजक्राफ्ट द्वारा आयोजित बच्चन
परिवार के अनफॉरगेटेबल टुअॅर से खुद को अलग कर लिया। मीडिया में तारीखों की समस्या
की बातें की गई, लेकिन पर्दे की पीछे की सच्चाई यही है कि फीस को लेकर सहमति नहीं
बन पाने के कारण बिपाशा और लारा इस टुअॅर से अलग हुई। उन्होंने विजक्राफ्ट और बच्चन
परिवार के सामने अपनी मांग रखी। ठीक है कि उन्हें इससे फिलहाल नुकसान हुआ और उन्हें
आईफा के बैंकॉक आयोजन में नहीं निमंत्रित किया गया, लेकिन उन्होंने यह संदेश तो दे
ही दिया कि वे प्रोफेशनल हैं और अपनी प्रोफेशनल सेवाओं के लिए उचित फीस चाहती हैं!
दरअसल, हीरोइनों की बढ़ रही फीस को फिल्म इंडस्ट्री में इन दिनों बदलाव के रूप
में देखा जा रहा है। कॉरपोरेट वर्ल्ड मानता है कि हीरोइनों को उनके योगदान के
अनुपात में फीस मिलनी चाहिए। इन दिनों फिल्मों के पॉपुलर हीरो 15 से 25 करोड़ रुपए
तक ले रहे हैं। ऐसी स्थिति में हीरोइनों का पांच से दस करोड़ लेना अनुचित नहीं है।
इस बढ़ोत्तरी और बदलाव के बावजूद गौर करें, तो हीरोइनों की फीस हीरो के आसपास नहीं
ठहरती। इन दिनों कोई भी नंबर वन हीरोइन या हीरो नहीं है, लेकिन फिर भी यदि पांच टॉप
हीरो और पांच टॉप हीरोइनों की फीस की तुलना करें, तो यह अंतर साफ नजर आ जाएगा!
ऐश्वर्या किसी भी सूरत में अभिषेक बच्चन से बड़ी ब्रैंड हैं, लेकिन दस के सूचकांक
में अगर अभिषेक दस पर हैं, तो ऐश्वर्या हैं सात पर..। यह एक कड़वी सच्चाई है।
एक ट्रेड विशेषज्ञ कहते हैं, हीरो-हीरोइनों की फीस का यह फर्क बना रहेगा,
क्योंकि हिंदी फिल्में आज भी हीरो के नाम पर ही बनती, बेची जाती और चलती हैं। वे
तर्क देते हैं, हाल-फिलहाल में कोई भी ऐसी फिल्म नहीं आई है, जिसे नायिका प्रधान
कहा जा सके! नायिका प्रधान फिल्में मुख्य रूप से प्रयोगात्मक और कम बजट की होती
हैं, इसलिए फिल्म कारोबार में उनकी कामयाबी और सराहना को कोई भी दर्जा हासिल नहीं
है। सच यही है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भारतीय समाज की तरह ही पुरुष प्रधान है।
यहां भी पुरुषों का बोलबाला है और चूंकि हिंदी फिल्मों के दर्शकों का बड़ा प्रतिशत
पुरुष ही हैं, इसलिए हीरो ही उन्हें आकर्षित करता है।
हीरोइनें फिल्म की कहानी में ही नहीं, पूरे कारोबार में सजावट और नमूने के काम आती हैं। कहते हैं, उनकी मादकता और कामुकता ही बेची जाती है। दरअसल.., हिंदी फिल्मों की हीरोइनें यदि अपनी भूमिकाओं
पर ध्यान देना आरंभ करेंगी और ठोस किरदारों की मांग करेंगी या फिर फिल्म में
केंद्रीय और हीरो के समतुल्य भूमिका के लिए दबाव डालेंगी, तभी वास्तविक बदलाव आएगा।
वर्ना एकाध फिल्मों की कामयाबी से चंद महीनों और सालों के लिए किसी एक हीरोइन की
फीस बढ़ जाएगी और यह विभ्रम होगा कि अब हीरोइनों का स्थान और भाव हीरो के बराबर हो
रहा है!
"जियाउददीन"
No comments:
Post a Comment