हम ज्ञान एवं विचार द्वारा बिलकुल ही नही बदलते है। अनुभव द्वारा ही हम बदलते हैं।
विचारों में जीना छोड़ों । विचार आपको उधार जीना सीखाते हैं । विचार दूसरांे से ग्रहण किये होते हैं जो प्राप्त होते हैं । अतः विचारों में जीना छोड़ों । अनुभव को प्रधानता दों । अनुभव का एक कण ज्ञान के टन से बहुत भारी होता हैं ।
मन आधारित जीवन न जीकर अनुभव आधारित जीवन जीए । मन का प्रमुख कार्य सोचना, निर्णय करना, तुलना करना, न्यायोचित ठहराना एवं तादत्म्य बिठाना हैं । अतः इन पांचों कार्यो की तुलना में अपने अनुभव को प्राथमिकता दो । कई बार अनुभव के उपरान्त भी आपकी शंका बनी रहती हैं तो उसे छोड़ों । बुद्धि के आधार पर अनुभव को उपेक्षित मत करों । अनुभव से ही जीवन में रूपान्तरण सम्भव हैं ।
परिवर्तन एक मानसिक क्रिया नहीं हैं । अनुभवों के प्रति साक्षी होना ही सच में बुद्धिमान अर्थात् प्रज्ञावान होना हैं । जब हम अनुभव करते है तब स्व में होते हैं जब चर्चा करते हैं तब स्व से दूर होते हैं । प्रतिक्रिया करना स्व को खोना हैं ।
मस्तिष्क की संरचना कुछ इस प्रकार की है कि हम अनुभव से ही बदल पाते हैं ।
सूचनात्मक ज्ञान एवं स्मृति हमें रूपान्तरित करने में असमर्थ हैं। वर्तमान की सारी शिक्षा सूचनात्मक ज्ञान बढ़ाती हैं । तभी तो राजस्थानी में कहा गया है कि ’’भण्या घणा पण गण्या नहीं ’’ इसका अर्थ है कि शिक्षा तो बहुत प्राप्त की लेकिन अनुभव शून्य हैं ।
"जियाउददीन"
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