दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दो वयस्कों के बीच आपसी सहमती से बने समलैंगिक संबंधों को
अपराध मुक्त घोषित किए जाने के निर्णय के बाद बुद्धजीवियों में बहस शुरू हो गई है।
एक तरफ जहां निर्णय के विरोध में लोग इसे भारतीय संस्कृति के पतन की शुरुआत मान रहे
हैं वहीं दूसरी ओर कुछ लोग समलैंगिकता को अपराध न मानने के निर्णय आने से खुश हैं।
निर्णय के विरोध में लोगों का कहना है कि जो कानून पिछले लंबे समय से अपराध की
श्रेणी में आ रहा है, उसमें ऐसा क्या बदलाव हो गया कि वह अपराध की श्रेणी से बाहर आ
गया। निर्णय के पक्ष व विपक्ष में लोग अपने-अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं।
फैसले के विरोध में डॉक्टर आनंद आर्य का कहना है कि भारत की अपनी सदियों पुरानी संस्कृति
है। समलैंगिकता विदेशी संस्कृति है, जो हमारे देश में कभी मान्य नहीं हो सकती।
समलैंगिकता समाज में एक बुराई है। अगर समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल जाएगी तो
सदियों पुरानी भारतीय संस्कृति का लोप शुरू हो जाएगा। बुद्धिजीवी समाज इसे किसी भी
रूप में स्वीकार नहीं करेगा। वरिष्ठ नागरिक एचसी गुप्ता व जेपी शर्मा का कहना है कि
समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलने के बाद समाज में गंदगी बढ़ेगी। गे कल्चर
अमेरिका व यूरोप में रहने वालों के दिमाग की उपज है। ऐसे रिश्ते सामाजिक व
स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं ठहराए जा सकते। इसे रोकने के लिए समाज के सभी
लोगों को एक मंच पर आ जाना चाहिए। छात्र जैनूल अहमद का कहना है कि हाईकोर्ट ने
समलैंगिकों को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का अधिकार दिया है। अगर आपसी सहमति
से दो वयस्कों के बीच शरीरिक संबंध बनते हैं तो इसमें बुराई नहीं है। हर व्यक्ति
अपनी इच्छानुसार जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र है। अगर मौजूदा समय में विश्व के कई
देशों में इसे कानूनी मान्यता मिली हुई है तो इसके पीछे कुछ अच्छाई तो होगी। आने
वाले समय में भारतीय समाज भी इसे स्वीकार करेगा।
"जियाउददीन"
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